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संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित

 संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित – नमस्कार दोस्तों आज हम एक ऐसे कवि के बारे में संत के बारे में बात करने जा रहे हैं जिनका नाम रविदास जी है रविदास जी को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है पंजाब में रविदास जी के नाम से पुकारा जाता है और मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से पुकारा जाता है गुजरात और महाराष्ट्र के लोगों द्वारा रोहिदास के नाम से पुकारा जाता है एवं बंगाल में उन्हें रूईदास के नाम से पुकारते हैं अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से रविदास जी को पुकारा जाता है |

संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है। रविदासजी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।

उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक परिद्ध मुस्लिम ‘सदना पीर’ उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उनपर हर प्रकार से दबाव बनाया गया था लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं मानवता से मतलब था।

संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। संत रविदास ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और मानवतावादी मूल्यों की नींव रखी। रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि ‘रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच’ यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता यानी उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित किए गए है। संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित,

रविदासजी के प्रसिध्द दोहे

ब्राह्मण मत पुजिये जो होवे गुणहीन !
पुजिये चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण !!
दोहे का अर्तुथ —>> इस दोहे के माध्यम से संत रैदास जी कहते है कि किसी मनुष्य को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए कि वह किसी ऊँचे कुल में जन्मा है हमें उस व्यक्ति को नहीं पूजना चाहिए जिसमे कोई गुण नहीं हो हमें ऐसे व्यक्ति को पूजना चाहिए जो गुणवान हो चाहे वह किसी नीची जाती का ही क्यों न हो
कह रैदास तेरी भगति दूरि है , भाग बड़े सो पावे !
तजि अभिमान मेटी आपा पर , पिपिलक हवे चुनि खावै !!
दोहे का अर्तुथ —>> संत रैदास जी कहते है कि मनुष्य को भगवान की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है ! जिस मनुष्य में थोडा सा भी अभिमान नहीं है उसका सफल होना निश्चित है ! यह ठीक उसी प्रकार है जैसे एक विशाल हाथी शक्कर के दानो को नहीं बीन सकता , लेकिन एक छोटी से चीटी शक्कर के दानो को आसानी से बीन लेती है |
जा देखे घिन उपजे , नरक कुंड में बांस !
प्रेम भगति सो उधरे , प्रगटत जन रैदास !!
दोहे का अर्तुथ —>> जिस रविदास को देखने से लोगो को घृणा होती थी , जिनके रहने का स्थान नर्क के समान था , ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना , ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में इनकी दौबारा उत्पति हुई हो
मन चंगा तो कठौती में गंगा !
दोहे का अर्तुथ —>> रैदास जी इस दोहे में कहते है कि जिस मनुष्य का मन पवित्र है , उसके बुलाने पर माँ गंगा एक कठौती ( चमड़ा भिगोने वाला पात्र ) में भी आ जाती है |
करम बंधन में बन्ध रहियो , फल की न तज्जियो आस !
कर्म मानुष का धर्म है , सत भाखे रविदास !!
दोहे का अर्तुथ —>> संत रैदास जी इस दोहे में कहते है कि मनुष्य को हमेशा अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए कभी भी फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए ! क्योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य |
मन ही पूजा मन ही धुप !
मन ही सेऊँ सहज स्वरूप !!
दोहे का अर्तुथ —>> इस दोहे के माध्यम से संत रैदास जी हमें यह कहते है कि एक पवित्र मन में ही ईश्वर का वास होता है ! यदि इस मन की किसी के प्रति कोई भेद – भाव , लालच या द्वेष की भावना नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान का मंदिर है , दीपक है और धुप है ! ऐसे मन में ही ईश्वर निवास करते है |
कृस्न , करीम , राम , हरि , राघव , जब लग एक न पेखा !
वेद कतेब कुरान , पुरानन , सहज एक नहीं देखि !!
दोहे का अर्तुथ —>> रैदास जी कहते है कि कृष्ण , राम करीम , हरि , राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग – अलग नाम है ! वेद , कुरान , पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर की बात करते है , और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ते है |
हरि – सा हीरा छांड के , करे आन की आस !
ते नर जमपुर जाहिंगे , सत भाषे रविदास !!
दोहे का अर्तुथ —>> हीरे से कीमती है हरि ! रैदास जी कहते है कि जो लोग भगवान की भक्ति को छोड़कर अन्य चीजो की आशा करते है उन्हें नर्क जाना ही पड़ता है |( संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित)
रविदास जन्म के कारने , होत न कोउ नीच !
नकर कुं नीच करि डारि है , ओछे करम की कीच !!
दोहे का अर्तुथ —>> कोई भी मनुष्य किसी जाती में जन्म लेने से निचा या छोटा नहीं होता है , मनुष्य हमेशा अपने कर्मो के कारण पहचाना जाता है
जाति – जाति में जाति है , जो केतन के पात !
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात !!
दोहे का अर्तुथ —>> संत रैदास जी कहते है कि जिस प्रकार से किसी केले के तने को छीला जाता है तो उसमे पते के ऊपर पता निकलता रहता है और पूरा पेड़ ख़त्म हो जाता है ! ठीक उसी प्रकार इंसानों को भी जातियों में बाँट दिया गया है , जातियों में बाँटने से इन्सान तो अलग – अलग बंट ही जाते है अंत में इन्सान ही खत्म हो जाता है लेकिन यह जाति कभी ख़त्म नहीं होती है |
रैदास कहे जाकै हदै , रहे रैन दिन राम !
सो भगता भगवंत सम , क्रोध न व्यापे काम !!
दोहे का अर्तुथ —>> इस दोहे में संत रविदास जी कहते है कि भक्ति में ही शक्ति होती है ! जिस मनुष्य के ह्रदय में दिन – रात राम के नाम का वास होता है , वह मनुष्य स्वयं राम के समान होता है ! रविदास जी कहते है कि राम के नाम में ही इतनी शक्ति है कि व्यक्ति को कभी क्रोध नहीं आता और कभी – भी कामभावना का शिकार नहीं होता है |
रविदास जन्म के कारने , होत न कोउ नीच !
नर कुं नीच करि डारि है , ओछे करम की कीच !!
दोहे का अर्तुथ —>> संत रैदास जी कहते है कि कोई भी इन्सान जन्म लेने से छोटा या बड़ा , उंच या नीच नहीं होता है इन्सान अपने कर्मो के कारण ही छोटा या बड़ा बनता है |
एकै साधे सब सधै , सब साधे सब जाय !
रहिमन मूलहि सींचिबो , फुले फले अगाय !!
दोहे का अर्तुथ —>> संत रैदास जी कहते है कि एक – एक काम साधने से हमारे सभी काम सध जाते है ! यदि हम एक साथ सभी कामो को साधने की कोशिश करते है तो उनमे हमें असफलता ही मिलती है ! यदि किसी पेड़ की पति और टहनी को सींचा जाये और उसकी जड को सुखा छोड़ दिया जाए तो वह पेड़ कभी फल नहीं दे पायेगा |( संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित)
रहिमन निज सम्पति बिना , कोऊ न बिपति सहाय !
बिनु पानी ज्यो जलज को , नहीं रवि सके बचाय !!
दोहे का अर्तुथ —>> संत रैदास जी कहते है कि जब मनुष्य की मुश्किल घडी आती है तब उस समय उसकी कोई मदद नहीं करता है , उस समय उसके पास मौजूद सम्पति ही उसकी सहायता करती है ! ठीक उसी प्रकार सूर्य भी तालाब का पानी सुख जाने पर कमल को सूखने से नहीं बचा सकता है |
रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच
दोहे का अर्तुथ —>> सिर्फ जन्म लेने से कोई नीच नही बन जाता है बल्कि इन्सान के कर्म ही उसे नीच बनाते हैं।
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
दोहे का अर्तुथ —>> जिस प्रकार केले के तने को छिला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता है आैर पूरा पेड़ खत्म हो जाता है ठीक उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बांट दिया गया है इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग अलग बंट जाता है और इन अंत में इन्सान भी खत्म हो जाते है लेकिन यह जाति खत्म नही होती है इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होंगा तब तक इन्सान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है या एक नही हो सकता है।
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
दोहे का अर्तुथ —>> अर्थात हीरे से बहुमूल्य हरी यानि भगवान है उसको छोड़कर अन्य चीजो की आशा करने वालों को अवश्य ही नर्क जाना पड़ता है अर्थात प्रभु की भक्ति को छोडकर इधर उधर भटकना व्यर्थ है।
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
दोहे का अर्तुथ —>> कि हमे हमेशा अपने कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म बदले मिलने वाले फल की आशा भी नही छोडनी चाहिए क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
दोहे का अर्तुथ —>> अर्थात राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण
दोहे का अर्तुथ —>> किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है. यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए, उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह कथित नीची जाति से हो |
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै
दोहे का अर्तुथ —>> ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है. यदि आदमी में थोड़ा सा भी अभिमान नहीं है तो उसका जीवन सफल होना निश्चित है. ठीक वैसे ही जैसे एक विशाल शरीर वाला हाथी शक्कर के दानों को नहीं बीन सकता, लेकिन एक तुच्छ सी दिखने वाली चींटी शक्कर के दानों को आसानी से बीन सकती है |( संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित)
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास
दोहे का अर्तुथ —>> जिस रविदास को देखने से लोगों को घृणा आती थी, जिनके रहने का स्थान नर्क-कुंड के समान था, ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना, ऐसा ही है जैसे मनुष्य के रूप में दोबारा से उत्पत्ति हुई हो |
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
दोहे का अर्तुथ —>> आदमी को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए, कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए, क्‍योंकि कर्म करना मनुष्य का धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य |
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
दोहे का अर्तुथ —>> राम, कृष्ण, हरि, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग-अलग नाम हैं. वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथों में एक ही ईश्वर की बात करते हैं, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ पढ़ाते हैं |
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
दोहे का अर्तुथ —>> हीरे से बहुमूल्य हैं हरि. यानी जो लोग ईश्वर को छोड़कर अन्य चीजों की आशा करते हैं उन्हें नर्क जाना ही पड़ता है |
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच
दोहे का अर्तुथ —>> कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है |
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
दोहे का अर्तुथ —>> जिस प्रकार केले के तने को छीला तो पत्ते के नीचे पत्ता, फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता, लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है. ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है, जातियों के विभाजन से इंसान तो अलग-अलग बंट ही जाते हैं, अंत में इंसान खत्म भी हो जाते हैं, लेकिन यह जाति खत्म नही होती |( संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित)

प्रमुख कवियों के दोहे लिस्ट 

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