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गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस 2022

गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस 2022

गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस 2022 : नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने वाले है गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस के बारे में गुरु तेग बहादुर सिख समुदाय के नौवें गुरु माने जाते है गुरु तेग बहादुर जी की जीवनी, गुरु तेग बहादुर जी के अनमोल वचन, गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षा, गुरु तेग बहादुर जी की कविता, गुरु तेग बहादुर जी के प्रारंभिक जीवन, गुरु तेग बहादुर जी का इतिहास, आदि सभी बिंदुओं पर आज इस आर्टिकल में विस्तार से चर्चा करेंगे । गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस 2022,

गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस 2022 है

देश के इतिहास में कुछ जांबाज ऐसे भी हुए हैं जो धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटे सिखों के नौवें गुरू तेग बहादुर भी ऐसे ही साहसी योद्धा थे उन्होंने न सिर्फ सिक्खी का परचम ऊंचा किया, बल्कि अपने सर्वोच्च बलिदान से हिंदू धर्म की भी हिफाजत की तेग बहादुर जी ने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म धारण नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया |

गुरू तेग बहादुर के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति द्वारा जारी नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक 24 नवंबर 1675 के दिन गुरू तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया तेग बहादुर जी के इस बलिदान को पूरी दुनिया में शहीदी दिवस के रूप में याद किया जाता है |

देश के इतिहास में कुछ जांबाज ऐसे भी हुए हैं, जो धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटे। सिखों के नौवें गुरू गुरू तेग बहादुर भी ऐसे ही साहसी योद्धा थे, जिन्होंने न सिर्फ सिक्खी का परचम ऊंचा किया, बल्कि अपने सर्वोच्च बलिदान से हिंदू धर्म की भी हिफाजत की। उन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म धारण नहीं किया और तमाम जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया। गुरू तेग बहादुर के धैर्य और संयम से आग बबूला हुए औरंगजेब ने चांदनी चौक पर उनका शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया और वह 24 नवंबर 1675 का दिन था, जब गुरू तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। उनके अनुयाइयों ने उनके शहीदी स्थल पर एक गुरूद्वारा बनाया, जिसे आज गुरूद्वारा शीश गंज साहब के तौर पर जाना जाता है।

गुरु तेग बहादुर जी का प्रारंभिक जीवन –

गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। ये गुरु हरगोविन्द जी के पाँचवें पुत्र थे। आठवें गुरु इनके पोते ‘हरिकृष्ण राय’ जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण जनमत द्वारा ये नवम गुरु बनाए गए। इन्होंने आनन्दपुर साहिब का निर्माण कराया और ये वहीं रहने लगे थे। उनका बचपन का नाम त्यागमल था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुग़लों के हमले के ख़िलाफ़ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया।

उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग़ बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया। युद्धस्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग़ बहादुर जी के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका का मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ। धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग़ बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर साधना की। आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी का नाम के लिए ‘बाबा बकाले’ का निर्देश दिया।

गुरु जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया। आनंदपुर साहब से कीरतपुर, रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुँचे। यहाँ उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुँचे। कुरुक्षेत्र से यमुना के किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुँचे और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया।

गुरु तेगबहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए। आध्यात्मिकता, धर्म का ज्ञान बाँटा। रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना कर नये आदर्श स्थापित किए। उन्होंने परोपकार के लिए कुएँ खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि कार्य भी किए। इन्हीं यात्राओं में 1666 में गुरुजी के यहाँ पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ। जो दसवें गुरु- गुरु गोविंद सिंह बने।

गुरु तेगबहादुर जी सिखों के नौवें गुरु माने जाते हैं। औरंगज़ेब के शासन काल की बात है। औरंगज़ेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज़ गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था। एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगज़ेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया परन्तु उसे बताना भूल गया कि उसे किन किन श्लोकों का अर्थ राजा से सामने नहीं करना था।

पंडित के बेटे ने जाकर औरंगज़ेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया। गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगज़ेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आपमें महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि वह अपने के धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी।

जुल्म से त्रस्त कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार ‍इस्लाम स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है, यातनाएं दी जा रही हैं। गुरु चिंतातुर हो समाधान पर विचार कर रहे थे तो उनके नौ वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम(गोविन्द सिंह ) ने उनकी चिंता का कारण पूछा ,पिता ने उनको समस्त परिस्थिति से अवगत कराया और कहा इनको बचने का उपाय एक ही है कि मुझको प्राणघातक अत्याचार सहते हुए प्राणों का बलिदान करना होगा।

वीर पिता की वीर संतान के मुख पर कोई भय नहीं था कि मेरे पिता को अपना जीवन गंवाना होगा। उपस्थित लोगों द्वारा उनको बताने पर कि आपके पिता के बलिदान से आप अनाथ हो जाएंगे और आपकी मां विधवा तो बाल प्रीतम ने उत्तर दियाः “यदि मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं या अकेले मेरी माता के विधवा होने जाने से लाखों माताएँ विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।”

अबोध बालक का ऐसा उत्तर सुनकर सब आश्चर्य चकित रह गए। तत्पश्चात गुरु तेगबहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगज़ेब से कह ‍दें कि यदि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे। और यदि आप गुरु तेगबहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे। इससे औरंगजेब क्रुद्ध हो गया और उसने गुरु जी को बन्दी बनाए जाने के लिए आदेश दे दिए।

गुरुजी ने औरंगजेब से कहा कि यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए। औरंगजेब यह सुनकर आगबबूला हो गया। उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर का शीश काटने का हुक्म दिया और गुरु तेगबहादुर ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।

गुरु तेगबहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है। गुरु तेगबहादुर जी की बहुत सारी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब के महला 9 में संग्रहित हैं।। गुरुद्वारे के निकट लाल किला, फिरोज शाह कोटला और जामा मस्जिद भी अन्‍य आकर्षण हैं। गुरु तेगबहादुर जी की शहीदी के बाद उनके बेटे गुरु गोबिन्द राय को गुरु गद्दी पर बिठाया गया। जो सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह जी बने।

श्री कीरतपुर साहिब जी पहुँचकर भाई जैता जी से स्वयँ गोबिन्द राय जी ने अपने पिता श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का शीश प्राप्त किया और भाई जैता जो रँगरेटा कबीले के साथ सम्बन्धित थे। उनको अपने आलिंगन में लिया और वरदान दिया ‘‘रँगरेटा गुरु का बेटा’’। विचार हुआ कि गुरुदेव जी के शीश का अन्तिम सँस्कार कहां किया जाए।

दादी माँ व माता गुजरी ने परामर्श दिया कि श्री आनंदपुर साहिब जी की नगरी गुरुदेव जी ने स्वयँ बसाई हैं अतः उनके शीश की अँत्येष्टि वही की जाए। इस पर शीश को पालकी में आंनदपुर साहिब लाया गया और वहाँ शीश का भव्य स्वागत किया गया सभी ने गुरुदेव के पार्थिक शीश को श्रद्धा सुमन अर्पित किए तद्पश्चात विधिवत् दाह सँस्कार किया गया।

कुछ दिनों के पश्चात भाई गुरुदिता जी भी गुरुदेव का अन्तिम हुक्मनामा लेकर आंनदपुर साहिब पहुँच गये। हुक्मनामे में गुरुदेव जी का वही आदेश था जो कि उन्होंने आंनदपुर साहिब से चलते समय घोषणा की थी कि उनके पश्चात गुरु नानक देव जी के दसवें उत्तराधिकारी गोबिन्द राय होंगे। ठीक उसी इच्छा अनुसार गुरु गद्दी की सभी औपचारिकताएं सम्पन कर दी जाएँ। उस हुक्मनामे पर परिवार के सभी सदस्यों और अन्य प्रमुख सिक्खों ने शीश झुकाया और निश्चय किया कि आने वाली बैसाखी को एक विशेष समारोह का अयोजन करके गोबिन्द राय जी को गुरूगद्दी सौंपने की विधिवत् घोषणा करते हुए सभी धर्मिक पारम्परिक रीतियाँ पूर्ण कर दी जाएँगी।

सहनशीलता , कोमलता और सौम्यता की मिसाल के साथ साथ गुरू तेग बहादुर जी ने हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को न तो डराना चाहिए और न ही डरना चाहिए । इसी की मिसाल दी गुरू तेग बहादुर जी ने बलिदान देकर. जिसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या भारत की ढाल भी कहा जाता है उन्होंने दूसरों को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी। गुरू तेग बहादुर जी को अगर अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरूष कह लिया जाए तो कहना जऱा भी गलत न होगा पूरा गुरू चमत्कार या करमातें नहीं दिखाता |

वो उस अकालपुरख की रजा में रहता है और अपने सेवकों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है गुरू तेग बहादुर जी ने धर्म की खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया ऐसा कोई संत परमेश्वर ही कर सकता है जिसने अपने पर में निज को पा लिया हो अर्थात् अपने हृदय में परमात्मा को पा लिया उसके भेद को तो कोई बिरला ही समझ सकता है आज जरूरत गुरू घर से जुड़ने की इसलिए तो गुरबाणी में कही गई बातों को अमली जामा पहनाने ।

संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान तो दे दी, परंतु सत्य का त्याग नहीं किया। नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी भी ऐसे ही बलिदानी थे। गुरु जी ने स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों एवं विश्वासों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। अपनी आस्था के लिए बलिदान देने वालों के उदाहरणों से तो इतिहास भरा हुआ है, परंतु किसी दूसरे की आस्था की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक मात्र मिसाल है-नवम पातशाह की शहादत।

गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षाएं –

गुरु तेग बहादुर जी द्वारा विभिन्न शिक्षा दी गई जिन्होंने एक के जनसमूह को प्रभावित किया। उन्होंने वाणी के15 रागों में 116 शब्द के गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित किया गया। उनके द्वारा धर्म की रक्षा अर्थात धर्म ही सर्वोपरि है। और उन्होंने अत्याधिक उपदेश दिए। गुरु तेग बहादुर जी द्वारा एकता व भाईचारा का पाठ पढ़ाया गया। गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षाओं का वर्तमान समय में बहुत महत्व है।

गुरु तेग बहादुर जी देश के लिए धार्मिक स्वतंत्रा के लिए बहुत से बलिदान दिए है और वह अपने रस्ते पर अडिंग रहे है तो रास्ते में मलिकपुर रंगडा गांव में सरहिंद के सूबेदार ने उन्हें बंदी बना लिया।

औरंगजेब तब दिल्ली से बाहर था 4 महीने तक गुरु तेग बहादुर जी सरहिंद के जेल में रहे। जब औरंगजेब दिल्ली आ गया तो गुरु जी व उनके साथियों को दिल्ली लाया गया । इसके बाद उन पर भयंकर अत्याचार का दौर शुरू हुआ ।

3 दिन तक उन्हें बा उनके शिष्यों को पानी तक नहीं दिया गया दिल्ली की कोतवाली के बाल गुरु जी वाह उनके शिष्यों को लाया गया। पहले भाई मती दास को आरे चिड़वाया गया । जब औरंगजेब का इससे भी मन नहीं भरा तो भाई दयाल दास को खोलते पानी में डाला गया ।गुरु तेग बहादुर औरंगजेब के सामने नहीं झुके और अपने शिष्यों के अद्भुत बलिदान का गुणगान करते रहे। इसके बाद भाई सती दास के बदन पर रुई लपेट कर आग लगाया दिया गया उन्हें शिष्यों के बलिदान के बाद गुरु तेग बहादुर जी ने अपना शीश बलिदान कर दिया । दिल्ली में शीश गंज गुरुद्वारा टेक बहादुर शास्त्री के उस महान बलिदान की स्मृति को आज भी ताजा कर देता है ।

गुरु तेग बहादुर जी के बारे में –

1. गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब के शासन के दौरान इस्लाम में गैर-मुस्लिमों के जबरन धर्मांतरण का विरोध किया था |
2. दिल्ली में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर 1675 में उनकी सार्वजनिक रूप से हत्या कर दी गई थी ।
3. दिल्ली स्थित गुरुद्वारा सिस गंज साहिब और गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उनके प्राणदण्ड और दाह संस्कार के स्थल हैं।
4. गुरु तेग बहादुर का गुरु के रूप में कार्यकाल 1665 से 1675 तक रहा था।
5. गुरु ग्रंथ साहिब में, गुरु तेग बहादुर के एक सौ पंद्रह भजन हैं।
6. गुरु तेग बहादुर को लोगों की निस्वार्थ सेवा के लिए याद किया जाता है। उन्होंने पहले सिख 7. गुरु – गुरु नानक के उपदेशों को लोगों तक पहुँचाने के लिए देश भर में यात्रा की थी।
7. गुरु तेग बहादुर जहां भी गए, स्थानीय लोगों के लिए सामुदायिक रसोई और कुएं स्थापित किए।
8. आनंदपुर साहिब, प्रसिद्ध पवित्र शहर और हिमालय सटा एक वैश्विक पर्यटक आकर्षण स्थल, गुरु तेग बहादुर द्वारा स्थापित किया गया था।

गुरु तेग बहादुर जी बलिदान दिवस 2022 –

गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु थे। देश धर्म को बचाने के लिए गुरु तेग बहादुर जी ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। गुरु तेग बहादुर जी हर साल 24 नवंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है

गुरु तेग बहादुर जी जीवन –

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म सिखों के आठवें गुरु श्री हरगोविंद जी के घर अमृतसर में 16 से 21 ईसवी में हुआ था। गुरु तेग बहादुर जी ने गद्दी पर बैठते ही सिखों का संगठन किया। और आनंदपुर नाम का स्थान बसाया। पटना में गुरु तेग बहादुर जी के घर गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ। उन्होंने कश्मीरी पंडितों और अन्य हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया । औरंगजेब ने गुरु जी को गिरफ्तार कर लिया।

गुरु जी को यातनाएं दी गई। इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने सबके सामने उनका सिर कटवा दिया। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहां गुरु जी की हत्या की गई तथा जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया।

विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वतीय हैं। गुरुजी सच्चे अर्थों में तेजस्वी ,महात्मा ,और सच्चे देशभक्त थे। धर्म ,मानवता, सिद्धांत के लिए शहीद होने वाले गुरु तेग बहादुर जी का स्थान से कि धर्म में विशेष महत्व रखता है । इन्हे ” हिंद दी चादर”के नाम से भी जाना जाता है।

गुरु तेग बहादुर जी की कविता –

सदियों में कोई आता है ऐसा
जो धर्म पताका फहराता है

दुनिया को धर्म का पाठ पढ़ा
है खुद की बलि चढ़ाता है।

भी एक वीर पुरुष ऐसे
सिखों के नौवें गुरु थे वो

धर्म की रक्षा की खातिर
सिर तक अपना कटा गए वो ।

गुरु तेग बहादुर जी के अनमोल वचन –

1 औरता पवित्र नहीं है : गुरु तेग बहादुर जी कहते हैं कि औरत अपवित्र नहीं है उसे हर चीज का अधिकार है वह मंदिर मस्जिद भी जा सकती है उसे किसी भी तरह का रोक नहीं है।
2 परमात्मा एक है : परमात्मा एक है और वह हर तरफ है।

Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने गुरु तेग बहादुर बलिदान दिवस 2022 के बारे जाने, यहाँ देखे कीमत के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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