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ट्रेन में बजते हैं 11 तरह के हॉर्न, नहीं जानते होंगे इनका मतलब

ट्रेन में बजते हैं 11 तरह के हॉर्न, नहीं जानते होंगे इनका मतलब

ट्रेन में बजते हैं 11 तरह के हॉर्न, नहीं जानते होंगे इनका मतलब – कौन-सा ब्रेक होता है ट्रेन में – ट्रेन में वही ब्रेक होता है, जो सड़क पर चलने वाले ट्रक या बस में होता है – एयर ब्रेक. एक पाइप होता है जिसमें ज़ोर की हवा भरी होती है. ये हवा नायलॉन के एक ब्रेक शू को आगे-पीछे करती है. ब्रेक शू पहिए पर रगड़ खाता है और पहिया रुकने लगता है |

भारत में चलने वाली ट्रेनों में सामान्य स्थितियों में ब्रेक लगा रहता है. गाड़ी चलाने के लिए ब्रेक वाले पाइप में प्रेशर बनाकर ब्रेक शू पहिए से अलग किया जाता है. तब गाड़ी आगे बढ़ पाती है. जनरल नॉलेज मज़बूत रखना चाहें तो याद रखें – भारतीय रेल के ब्रेक पाइप में प्रेशर रहता है 5 किलोग्राम प्रति वर्ग-सेंटीमीटर. ये वैसा ही है जैसे एक सेंटीमीटर X एक सेंटीमीटर जगह पर पांच किलो का बाट रख दिया जाए |

लोकोपायलट ब्रेक कब लगाता है –

ट्रेन को कब चलना है और कब रुकना है, ये लोकोपायलट के हाथ में नहीं होता. वो या तो सिग्नल के हिसाब से चलता है, या फिर गाड़ी के गार्ड के कहे मुताबिक. लोकोपायलट और गार्ड ही वो दो लोग होते हैं, जो गाड़ी के ब्रेक लगाने का फैसला लेते हैं. असल बात ये है कि किसी ट्रेन को 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भगाना अपेक्षाकृत आसान होता है. पेचीदा काम है ब्रेक लगाना. और इस तरह से लगाना कि गाड़ी सही जगह रुके, सही वक्त पर. मज़ाक में ये कहा भी जाता है कि लोकोपायलट असल तनख्वाह गाड़ी में ब्रेक लगाने की ही पाता है.

गाड़ी को जब तक हरा सिग्नल मिलता रहता है, वो अपनी नियत रफ्तार से चलती है. भारत में ये रफ्तार 160 किलोमीटर प्रतिघंटा तक हो सकती है (दिल्ली से आगरा के बीच). जब लोकोपायलट को दो पीले लाइट वाला सिग्नल दिखता है, वो गाड़ी की रफ्तार कम करना शुरू करता है. और इसके लिए उसके पास दो ब्रेक होते हैं. एक इंजन के लिए और दूसरा पूरी ट्रेन के लिए. ट्रेन के हर डिब्बे के हर पहिए पर ब्रेक होता है. ये सभी आपस में ब्रेक पाइप से जुड़े होते हैं |

जब ड्राइवर ब्रेक लीवर को घुमाता है, ब्रेक पाइप में हवा का दबाव कम होने लगता है और ब्रेक शू पहिए से रगड़ खाने लगता है. एक पीले लाइट वाले सिग्नल के बाद लोकोपायलट और ज़ोर से ब्रेक लगाता है. इसके बाद अगर गाड़ी को पीले सिग्नल मिलते रहें तो वो धीमी रफ्तार से चलती रहेगी और अगल लाल सिग्नल हुआ, तो लोकोपायलट हर हाल में सिग्नल से पहले गाड़ी खड़ी करता है. रेलवे में लाल सिग्नल पार करना गंभीर लापरवाही माना जाता है और ऐसा होने पर जांच होती है |

इमरजेंसी ब्रेक कब लगाए जाते हैं –

इमरजेंसी माने आपात स्थिति. भारतीय रेल का लोकोपायलट हर उस स्थिति में इमरजेंसी ब्रेक लगा सकता है, जिसमें उसे तुरंत गाड़ी रोकना ज़रूरी लगता है. सामने कुछ आ जाए, पटरी में खराबी दिखे, गाड़ी में कोई खराबी हो, कुछ भी कारण हो सकता है. इमरजेंसी ब्रेक उसी लीवर से लगता है जिससे सामान्य ब्रेक. लीवर को एक तय सीमा से ज़्यादा खींचने पर इमरजेंसी ब्रेक लग जाते हैं |

इमरजेंसी ब्रेक लगाने के बाद कितनी दूरी पर ट्रेन रुकती है –

अगर 24 डिब्बों की ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हो और लोकोपायलट इमरजेंसी ब्रेक लगा दे, तो ब्रेक पाइप का प्रेशर पूरी तरह खत्म हो जाएगा और गाड़ी के हर पहिए पर लगा ब्रेक शू पूरी ताकत के साथ रगड़ खाने लगेगा. इसके बावजूद ट्रेन 800 से 900 मीटर तक जाने के बाद ही पूरी तरह रुक पाएगी. मालगाड़ी के मामले में रुकने की दूरी इस बात पर निर्भर करती है कि गाड़ी में कितना माल लदा है. मालगाड़ी में इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर वो 1100 से 1200 मीटर जाकर रुकती है. डेमू (जो अमृतसर हादसे में थी) को रुकने के लिए कम से कम 625 मीटर की दूरी चाहिए होती है |

जब आप डिब्बे में लगी इमरजेंसी चेन खींचते हैं, तब भी कमोबेश यही होता है. ब्रेक पाइप का प्रेशर बड़ी तेज़ी से कम होता है और पूरी ताकत से ब्रेक लग जाते हैं. ये वैसा ही है, जैसे ड्राइवर या गार्ड पूरी ताकत से ब्रेक लगाएं |

गाड़ी के सामने किसी के आ जाने पर लोकोपायलट ट्रेन क्यों नहीं रोकता –

अब तक आप समझ गए होंगे कि लोकोपायलट अगर इमरजेंसी ब्रेक लगाना भी चाहे, तो उसे बड़ी दूर से नज़र आ जाना चाहिए कि कोई पटरी पर है. आमतौर पर रेल हादसों में लोग, जानवर या गाड़ियां अचानक गाड़ी के सामने आ जाते हैं. ऐसे में लोकोपायलट के पास इमरजेंसी ब्रेक लगाने का समय ही नहीं होता. और अगर इमरजेंसी ब्रेक लगा भी दिया जाए तो टक्कर हो ही जाती है |

अगर पटरी पर मोड़ हो तो ट्रैक पर कुछ भी देखना और मुश्किल हो जाता है. खासकर तेज़ रफ्तार पर. ऐसे में मामूली से मामूली मोड़ तक पर कोई चीज़ तभी नज़र आती है जब वो बिलकुल पास आ जाती है. रात को इमरजेंसी ब्रेक का इस्तेमाल और मुश्किल हो जाता है. लोकोपायलट को रात में उतना ही ट्रैक नज़र आता है, जहां तक इंजन के लाइट की रोशनी जाती है. कोई भीड़ अगर रात के वक्त ट्रैक पर हो, तो ड्राइवर को लगभग एक किलोमीटर के दायरे में होने पर नज़र आएगी. और तब इमरजेंसी ब्रेक लगाकर भी गाड़ी रोकना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में ड्राइवर की आखिरी उम्मीद होती है इंजन में लगा हॉर्न. वो उसे लगातार बजाता है. अमृतसर हादसे वाली डेमू का हॉर्न भी टक्कर के वक्त बज रहा था.

भारतीय रेल के लोकोपायलट ज़ोर देकर कहते हैं कि कोई जानबूझकर अपनी गाड़ी से किसी को नहीं कुचलता. अगर ट्रैक पर कुछ नज़र आता है और ड्राइवर के पास उसे बचाने का कोई भी रास्ता होता है तो उसे ज़रूर अमल में लाया जाता है.

क्या इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर पटरी से उतर जाती है ट्रेन –

ये एक आम मिथक है कि इमरजेंसी ब्रेक लगाने से गाड़ी पटरी से उतर जाती है. दी लल्लनटॉप ने जब एक लोकोपायलट से ये सवाल किया तो उन्होंने समझाया,

”गाड़ी पटरी से तभी उतरती है जब या तो पटरी में खामी हो या गाड़ी में. इमरजेंसी ब्रेक लगाने भर से गाड़ी कभी पटरी से नहीं उतरती. इमरजेंसी ब्रेक दिया ही इसलिए जाता है कि ज़रूरत के वक्त गाड़ी कम से कम समय में सुरक्षित तरीके से रोकी जा सके. लोकोपायलट को हर उस स्थिति में इमरजेंसी ब्रेक लगाना चाहिए जिसमें उसे ज़रूरी लगे.”

ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ असोसिएशन और रीसर्च डेवलपमेंट स्टैंडरडाइज़ेशन ऑर्गनाइज़ेशन (आरडीएसओ; भारतीय रेल में तकनीकी रीसर्च करने वाला संस्थान) साफ कर चुका है कि गाड़ी इमरजेंसी ब्रेक लगाने से कभी पटरी से नहीं उतरती. पटरी से गाड़ी उतरने का हमेशा कोई दूसरा तकनीकी कारण होता है |

अमृतसर हादसे के बारे में क्या कहा है रेलवे ने –

रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी ने कहा है कि लोग मेन लाइन पर जमा थे. मेन लाइन पर ट्रेनें अपनी निर्धारित स्पीड पर चलती हैं. लोहानी के मुताबिक डेमू लोकोपायलट ने हॉर्न बजाया और ब्रेक लगाने की कोशिश भी की. गाड़ी की रफ्तार 92 किलोमीटर प्रति घंटा थी जो टक्कर तक 68 किलोमीटर तक घट गई थी. लेकिन चूंकि ट्रेन को रुकने के लिए 625 मीटर की जगह चाहिए थी, गाड़ी धीमी होते-होते भी भीड़ पर चढ़ गई |

एक शॉर्ट (छोटा) हॉर्न –

आपको जानकर हैरानी होगी कि ट्रेन के लोको पायलट 11 अलग-अलग तरह के हॉर्न बजाते हैं और सबके मतलब अलग-अलग होते हैं। अगर ट्रेन का ड्राइवर एक शॉर्ट (छोटा) हॉर्न बजाता है तो इसका मतलब होता है कि ट्रेन यार्ड में आ गई है और उसकी साफ-सफाई का वक्त हो गया है।

दो शॉर्ट (छोटे) हॉर्न –

अगर ट्रेन का ड्राइवर दो छोटे हॉर्न बजाता है तो इसका मतलब कि ट्रेन चलने के लिए तैयार है और ड्राइवर ट्रेन के गार्ड से सिग्नल के लिए पूछ रहा है।

तीन शॉर्ट (छोटे) हॉर्न –

आमतौर पर इस तरह के हॉर्न बहुत कम ही सुनने को मिलते हैं। दरअसल तीन छोटे हॉर्न आपातकालीन स्थिति में बजाए जाते हैं। इसका मतलब होता है कि लोकोपायलट का कंट्रोल ट्रेन के इंजन से छूट चुका है। ये हॉर्न ट्रेन के गार्ड के लिए एक संकेत होता है कि वो तत्काल वैक्यूम ब्रेक लगाकर ट्रेन को रोके।

चार शॉर्ट (छोटे) हॉर्न –

इसका मतलब होता है कि ट्रेन में तकनीकी खराबी है और वो इससे आगे जाने की स्थिति में नहीं है।

एक लंबा और एक छोटा हॉर्न –

इस हॉर्न का मतलब होता है कि इंजन स्टार्ट (शुरू) करने से पहले ट्रेन ड्राइवर ब्रेक पाइप सिस्टम को सेट करने के लिए गार्ड को संकेत दे रहा है।

दो लंबे और दो छोटे हॉर्न –

इसका मतलब होता है कि ट्रेन ड्राइवर इंजन का नियंत्रण लेने के लिए गार्ड को संकेत दे रहा है।

लगातार या लंबा बजने वाला हॉर्न –

इस तरह का हॉर्न प्लेटफॉर्म पर खड़े यात्रियों को सतर्क करने के लिए बजाया जाता है कि ट्रेन कई स्टेशनों से नॉन-स्टॉप गुजर रही है और उस स्टेशन पर नहीं रूकेगी।

दो बार रुक-रुक कर बजने वाला हॉर्न –

ये हॉर्न किसी क्रॉसिंग के करीब आने पर बजाया जाता है ताकि कोई रेलवे क्रॉसिंग के आस-पास न आ सके।

दो लंबे और एक छोटा हॉर्न –

ऐसा हॉर्न तब बजाया जाता है जब ट्रेन अपना ट्रैक बदल कर दूसरे ट्रैक पर जा रही होती है।

दो छोटे और एक लंबा हॉर्न –

ऐसा हॉर्न सिर्फ दो स्थितियों में ही बजता है। या तो किसी ने चेन पुलिंग की है या फिर गार्ड ने वैक्यूम प्रेशर ब्रेक लगाए हैं।

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