इतने भी बुरे नहीं होते दुख, जितने कि हमें लगते हैं – मुझे भरपूर सुंदरता और सुगंध मिली, मेरी उपस्थिति के बिना ईश-आराधना अधूरी रह जाती है। तो फिर मेरे साथ कांटे क्यों जड़ दिए गए गुलाब यह सोच कर मलिन होने लगा। उसने निश्चय किया कि रोज भगवान के शीश पर शोभा पाता हूं, आज उनके चरणों में बैठकर उनसे ही यह बात पूछूंगा। भगवान के दरबार में पहुंच कर गुलाब दुखी स्वर में बोला, ‘हे सृजनहार! आपने मुझे सब कुछ दिया, लेकिन इतना देने के बाद आपने क्या सोच कर मुझे कांटों का साथ दिया क्या यह मेरे साथ अन्याय नहीं है’ भगवान ने कहा, ‘वत्स, तुम्हारा दुख व्यर्थ है। ये कांटे तुम्हारे साथ अन्याय नहीं, तुम्हारे लिए वरदान हैं। ये कांटे वास्तव में रंग, रूप और सुंगध की रक्षा के सजग प्रहरी हैं, ताकि तुम अपने पूरे रूप में खिल सको। इन्ही कांटों की वजह से तुम सुरक्षित रह पाते हो।’
इस सृष्टि में हम जिस विपत्ति को कांटों की चुभन की तरह कष्टकारक समझते है, उसका भी हमसे गुलाब के कांटों जैसा ही अनोखा रिश्ता है। गुलाब का कांटों के बीच खिलना हमारे जीवन के लिए प्रकृति का संदेश है कि जीवन फूलों की सेज नहीं है। जैसे गुलाब में केवल कोमलता ही नहीं होती, उसी तरह जीवन भी सुख-दुख का संगम है। जिसने यह रहस्य समझ लिया, वह हर अभिशाप को भी वरदान बना लेता है। गुलाब को प्रेम-प्रतीक मानने वाले प्रेमियों को यह संकेत है कि प्रेम में भी बहुत दर्द होते हैं, चुभन होती है। दर्द और चुभन के कांटों की परवाह करोगे तो प्रेम के सुंदर गलात की सगंध से वंचित रह जाओगे।
चाणक्य नीति कहती है कि ज्ञानी को कांटा चुभे तो उसे कष्ट और दर्द तो होता है, मगर वह दुखी नहीं होता। हम भी जब किसी तकलीफ में हों तो विचारें कि सिर्फ कष्ट में हैं या वाकई दुखी हैं? कष्ट मतलब अभाव और दुख मतलब भाव। जीवन वृक्ष भी सुख के फूल और दुख के कांटे दोनों से पल्लवित होता है। हमें प्रारंभ से ही सुख और दुख दोनों के लिए तैयार रहना होगा। बचपन केवल कठोरता पाए तो निश्चित ही दुखी होगा, लेकिन प्रेम ही मिलता रहे तो उसमें कोई ‘रीढ’ विकसित नहीं हो पाएगी। ऐसे में जब भी जीवन की वास्तविकता सामने होगी, वह धराशायी हो जाएगा। अभिभावक उसे प्रेम देते रहें, जिससे वह जान सके कि प्रेम संभव है पर कठोर भी रहें, जिससे बच्चा जान सके कि जीवन में कड़ा संघर्ष है। इसके लिए ओशो कहते हैं कि विपत्तियों के सामने वह फौलाद की तरह कठोर भी हो और जब परिस्थिति बदले तो गुलाब के फूल की भांति कोमल की भांति कोमल हो जाए।
जेठ तपेगा नहीं तो सावन भी नहीं बरसेगा। गर्मी कष्टदायक है, तो वर्षा आनंददायक। यह बात हमारे जीवन के सुखदुख पर भी उतनी ही सटीक बैठती है। दुख विपरीत स्थितियों से जूझने की क्षमता का विकास कर हमारी ऊर्जा को जगाता है। व्यक्ति और समाज, दोनों के विकास के लिए परस्पर विरोधी भावों या ऊर्जा की उपस्थिति अनिवार्य है। सुख की अनुभूति भी तभी होगी, जब दुख की अनुभूति होगी। वैसे भी सुख-दुख स्वयं में कुछ नहीं हैं, ये मात्र मनुष्य मन की सापेक्ष अवस्थाएं हैं। वानस्पतिक रूप से समझें तो गुलाब के पौधे में मौजूद कांटे पानी का संतुलन बनाए रखते हैं। ऐसे ही दुख भी सुख के क्षणों में धीरज और संयम बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने इतने भी बुरे नहीं होते दुख, जितने कि हमें लगते हैं के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।
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